क्यों हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी धार्मिक फिल्म को मनहूस कहा गया जरुरु जाने
आइये जानते है
दोस्तों भारत में 80 के दशक में टेलिविजन इंडस्ट्री के वजूद में आने से पहले 1 लंबे समय तक बड़े पर्दे ने ही धार्मिक कहानियों को लोगों तक पहुँचाने का काम किया था इस दौरान हिंदी सिनेमा में कई पौराणिक और धार्मिक कथाओं पर आधारित फिल्मों का निर्माण हुआ था जिनमे से कुछ फिल्मों को लोगों द्वारा आज भी याद किया जाता है लेकिन इन सबके बीच 1 ऐसी फिल्म भी आई थी जिसके बनने और कामयाब होने की कहानी पर यकीन करना बहुत मुश्किल जान पड़ता है क्यूंकि जय संतोषी माँ नाम की इस फिल्म को मिलने वाला प्यार आज तक किसी भी धार्मिक फिल्म को नसीब नहीं हुआ है
फिल्म की कहानी सत्यवती नाम की 1 धर्म परायण महिला की है जो संतोषी माँ के भक्त हैं जिनकी कृपा से उनकी शादी बिरजु नाम के 1 शख्स से हो जाती है लेकिन ससुराल में सत्यवती को अपनी पाती की बहनों द्वारा बहुत दुख दिया जाता है जहाँ उसकी मदद माँ संतोषी करती है और आखिर में सब कुछ सही हो जाता है बात करें फिल्म के बनने की तो यह किस्सा भी किसी धार्मिक फिल्म जैसा ही था जो फिल्म में बिरजू का किरदार निभाने वाले अभिनेता आशीष कुमार ने बताया था आशीष कुमार के अनुसार शादी के बाद भी उन्हें बहुत समय के बाद भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई जिसके चलते उनकी पत्नी ने संतोषी माता के 16 शुक्रवार का व्रत करना शुरू कर दिया था संतोषी माता की कृपा से व्रत के दौरान ही उनकी पत्नी गर्भवती हो गयी और बाकी बचे उपवास पर आशीष कुमार ने ही अपनी पत्नी को 16 सोमवार की कहानी सुनाई थी इसके बाद जब उनके घर 1 बेटी का आगमन हुआ तो उन्होंने यह बात फिल्म जय संतोषी माता के प्रोड्यूसर सतराम रोहरा को सुनाई जो संतोषी माता को ध्यान में रखते हुए फिल्म बनाने के लिए तैयार हो गए
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बात करे फिल्म के स्टार कास्ट की तो इस फिल्म में उन समय के बड़े अभिनेताओं की जगह नए चेहरों को अपनी अदाकारी दिखाने का मौका मिला था जहाँ उनके बेहतरीन काम ने सभी अभिनेताओं को हमेशा के लिए अमर कर दिया था फिल्म में सत्यवती का किरदार कानून कौशल ने निभाया था जो हिंदी फिल्मों के अलावा गुजराती और भोजपुरी सिनेमा में काम कर चुकी थी भक्ति भाव से भरपूर 1 असहाय और पीड़ित महिला के किरदार में कानून कौशल जी ने अपनी बेहतरीन प्रतिभा को प्रस्तुत किया था बात करें फिल्म में बिरजू का किरदार निभाने वाले अभिनेता आशीष कुमार की तो इन्हें इस फिल्म के बाद बॉलीवुड में बनने वाली लगभग हर धार्मिक फिल्म का 1 अहम हिस्सा मान लिया गया था जय संतोषी मा से पहले हनुमान विजय जैसी फिल्मों में काम करने वाले आशिष कुमार को 16 शुक्रवार गायत्री महिमा और मीरा श्याम फिल्मों में अहम किरदार निभाते देखा गया था
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अब बात करें इस फिल्म के सबसे चर्चित और मुख्य किरदार संतोषी माता की तो इस किरदार को निभाने वाले अभिनेत्री का नाम अनिता गुहा था जो इससे पहले 3 अलग अलग फिल्मों में माता सीता के किरदार को पर्दे पर अभिनीत कर चुकी है लेकिन इस फिल्म के बाद उन्हें वही सफलता मिली थी जो दीपिका चिखलिया को माता सीता के किरदार को निभाने के बाद नसीब हुई थी इन सब के अलावा इस फिल्म में भारत भूषण जी पंडित देवी दत्त के किरदार में नजर आए थे जो फिल्म में सत्यवती के पिता हैं फिल्म में संतोषी माता का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री अनीता गुहा ने अपने 1 इंटरव्यू में बताया था की फिल्म की शूटिंग का पहला दिन बहुत अफरा तफरी में बीता था जिसके चलते पहले नाश्ता और फिर दोपहर का भोजन भी मिस हो गया था इसका एहसास जब निर्देशक विजय शर्मा को हुआ तो उन्होंने शाम को सभी के खाने के लिए इंतज़ाम किया तो अनिता जी ने यह सोच कर खाने के लिए मना कर दिया की कहीं मेकअप खराब हो गया तो उसे फिर से ठीक करने में काफी वक्त लग जाएगा इस तरह पूरा दिन बिना खाए गुजारने के बाद अनिता गुहा ने इसे इस परीक्षा को मानते हुए फिल्म की शूटिंग के दौरान हर दिन व्रत रखने का फैसला कर लिया था
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इस सिनेमा के सुपरहिट गीत मै तो आरती उतारू रे को आज भी संतोषी माता के भक्त मंदिरों में आरती के रूप में गाते हैं पंद्रह अगस्त 19, 1975 को हिंदी सिनेमा की ये फिल्म शोले के साथ यह फिल्म भी सिनेमा घरों में रिलीज हुई थी | फिल्म जय संतोषी माँ के पहले 3 दिनों का ब्लॉक्स ऑफिस कलेक्शन देख कर कोई यह नहीं कह सकता था की किया गया फिल्म साल की दूसरी सबसे बड़ी हिट फिल्म बन जाएगी और इस करिश्मे की शुरुआत हुई सोमवार के दिन जब मुंबई और आस पास के इलाकों से बैल गाड़ी और पैदल लोगों की कतारें सिनेमा घरों की तरफ जाने लगी पता चला की ये लोग जय संतोषी मा की तारीफ सुन कर यहाँ आये हुए हैं फिर क्या था लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी । इस फिल्म को लेकर लोगों के दिलों में श्रद्धा की भावना इतनी अधिक हो गयी थी की लोग अपने जूते सिनेमा घरों के बाहर उतार कर अंदर जाते थे। फिल्म पूरी होने के बाद बाहर बाकायदा प्रसाद बाटा जाता था और दुकानदार सिनेमा घरों के बाहर संतोषी मा की अलग अलग मूर्तियां लेकर बैठ जाते थे। बड़ी स्क्रीन पर लोग नित गुवा को संतोषी माँ के रूप में देख कर फूल और सिक्के उछाला करते थे जो अगले दिन सिनेमा घरों की सफाई कर्मी उठा लेते थे।
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और कहा जाता है की उन सिक्कों से कई लोगों की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से बदल गयी थी। कहा जाता है की इस फिल्म को बनने से पहले संतोषी माँ के भारत में गिने चुने मंदिर थे और बहुत से लोग संतोषी माँ के नाम से भी अनजान थे। यहाँ तक की इस फिल्म में संतोषी माँ का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री अनीता गुहा को भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। मगर इस फिल्म के बाद संतोषी माँ के मंदिर बनने लगे, लोग उनकी पूजा करने लगे और साथी अन्य देवी देवताओं की तरह संतोषी माता के व्रत रखने का विधान भारत के अधिकांश राज्यों में इस फिल्म के बाद ही शुरू हुआ था। साल 2 हज़ार 6 में जब इस फिल्म को पहली बार टेलीविजन पर प्रसारित किया गया था तब अनीता गुहा ने बताया था की इस फिल्म के रिलीज होने के बाद उनके घर के बाहर लोग लोगों की भीड़ हर समय मौजूद रहती थी। लोग उन्हें देवी मानने लगे थे
अब आप सोच रहे होंगे की ऐसी प्रथम सफलता के बाद ऐसा क्या हुआ की यह फिल्म लोगों की नजरों में शापित बन गई तो उसकी भी अपनी 1 अलग कहानी है। दरअसल इस फिल्म से जुड़े अधिकतर लोगों का जीवन इस फिल्म के बाद काफी मुश्किल हालातों में गुजरा फिल्म के प्रोड्यूसर सतराम रोहरा दिवालिया हो गए थे। फिल्म के वितरक केदारनाथ अग्रवाल के पास भी अपना पैसा नहीं पहुँच पाया था। कहा जाता है की उस पैसे को केदारनाथ के भाइयों ने बीच में ही समेट लिया था। इसके अलावा नीता गुहा का भी अपने पति के असामयिक निधन के बाद 1 गंभीर बीमारी के चलते गुमनामी में निधन हो गया था। और सुपर स्टार भारत भूषण के आखिरी दिनों से तो हम सभी वाकिफ ही होंगे। सितारों का इंजाम भले ही कुछ भी रहा हो लेकिन यह फिल्म आज भी हिंदी सिनेमा की धार्मिक फिल्मों के लिए 1 मिसाल है।
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सभी मुश्किलों और कालजयी फिल्म ऐसी टक्कर के बावजूद 12 लाख के बजट में बनी इस फिल्म ने लगभग 5 करोड़ का बिजनेस किया था जो इस फिल्म के सफलता को खुद ब खुद बयान करता है। इस फिल्म के रिलीज के 30 साल बाद 2006 में इसी नाम से 1 और फिल्म रिलीज हुई थी जिसमें 1 बार फिर उषा मंगेशकर जी ने अपनी आवाज दी थी लेकिन कहते है न की जादू 1 ही बार होता है संतोषी माता पर आगे भी कई फिल्मों का निर्माण किया गया मगर कोई भी सफलता के उस स्तर को छू नहीं पाया जो साल 1975 में तय किया गया था।
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